महादेवी वर्मा का जीवन परिचय | Mahadevi Verma ka Jivan Parichay | Mahadevi Verma Biography in Hindi
कवि किसी भी समाज के लिए एक आवाज होती है और उसकी कविताओं से समाज जागृत होता है। भारत ऋषि मुनियों के ही नहीं पीर पैगंबरों का, महान शासकों का और महान कवियों का देश माना जाता है। आपने कवियित्री महादेवी वर्मा का नाम सुना होगा।
महादेवी वर्मा एक ऐसी कवियत्री थी जिसने अपनी कृतियों से सभी समाज को जागृत किया। महादेवी वर्मा एक कवियत्री नहीं थी साथ में एक समाज सेवी थी।
उन्हें कवि इतिहास की सरस्वती और आधुनिक युग की मीरा कहा जाये तो भी आपको मानना पड़ेगा। उनकी कविताओं ने आजाद भारत से पहले और आजाद भारत के बाद भी समाज के सृजन के लिए योगदान दिया है। आज हम महादेवी वर्मा के जीवन परिचय, उनकी शिक्षा, परिवार और कुछ कृतियों पर नजर डालेंगे।
Mahadevi Verma ka jivan parichay | Mahadevi Verma Biography in Hindi
कवियत्री महादेवी वर्मा का जन्म भारत के उत्तर प्रदेश के फ़र्रुख़ाबाद जिले में 16 मार्च 1907 ईसवी में हुआ था। महादेवी वर्मा के पिता जी का नाम श्री गोविंद प्रसाद वर्मा था जो एक कुशल और सटीक अध्यापक थे और उत्तर प्रदेश के भागलपुर जिले में कार्यरत थे।
उनकी माता जी का नाम हेमरानी देवी था जो एक कर्मनिष्ठ और धार्मिक स्वभाव की स्त्री थी और हमेशा ही भगवान् के चरणों में लीं रहती थी।
अगर महादेवी वर्मा के पिता और महादेवी वर्मा के पिता की निजी जिंदगी में अंतर करें तो दोनों में ये अंतर था कि उनकी माता एक धार्मिक किसम की और संगीत प्रेमी स्त्री थी तो दूसरी तरफ उनके पिता जी भगवान् पर थोड़ा काम विश्वाश रखते थे और नास्तिक किस्म के इंसान थे।
पर नास्तिक का अर्थ ये नहीं कि वे एक कठोर स्वभाव के व्यक्ति थे पर वे एक दिल के धनी और हमेशा खुश रहने वाले व्यक्ति थे।
हम सभी जानते हैं कि पहले भारतीय रीती रिवाजों के हिसाब से लड़कियों और लड़कों की शादी पहले कर दी जाती थी।
महादेवी वर्मा के साथ भी यही हुआ था उनकी शादी 1916 में उनके पिता जी ने श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया जब महादेवी वर्मा मात्र दसवीं जमात की विद्यार्थी थी।
अगर महादेवी वर्मा के विवाहित जीवन की बात करें तो उनका विवाहित जीवन सफल नहीं रहा था। उनके पिता जी ने महादेवी वर्मा से दूसरी शादी करने के लिए भी कहा था पर महादेवी वर्मा ने सन्यास धारण करने का निश्चय कर लिया था और उन्होंने वही किया। हालाँकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है की महादेवी वर्मा और श्री स्वरूप नारायण वर्मा के सबंध आपस में ठीक रहे अर्थात उनका आपस में कोई भी वैर या दुश्मनी नहीं थी।
जब महादेवी वर्मा के पति का देहांत 1966 में हुआ था तो उसके बाद उन्होंने पूर्ण रूप से सन्यास धारण कर लिया था। महादेवी वर्मा के दो भाई थे जिनका नाम जगमोहन और मनमोहन था। इन दो भाइयों के इलावा महादेवी वर्मा की एक बहन थी जिसका नाम श्यामा था।
महादेवी वर्मा के नाम के साथ महादेवी कैसे जुड़ा ?
महादेवी वर्मा का जन्म हमारी परम्पराओं और रीती रिवाजों के थोड़ा सा अलग था हम सभी जानते हैं कि जब महादेवी वर्मा का जन्म होता था तब देश सामाजिक बुराइयों से लोट प्रोत था।
लड़कियों को शिक्षा नहीं दी जाती थी। लड़कियाँ के जन्म के प्रति समाज की सोच बिलकुल गलत थी। भ्रूण हत्या पर बाल विवाह जैसी बुराइयां थी। पर महादेवी वर्मा का परिवार एक ऐसा परिवार था जो दो सदियों से अपने परिवार में लड़की के होने का इन्तजार कर रहा था।
अर्थात उनके परिवार में 200 सालों से ये इन्तजार था की कब उनके परिवार मैं एक लड़की हो। हुआ भी हुआ और महादेवी वर्मा का जन्म हुआ जिससे उनके पिता बाबू बाँके विहारी जी का ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने ख़ुशी से झूमकर ये कहा कि उनके घर में "देवी" का जन्म हुआ है उसके बाद उनका नाम महादेवी के नाम से जाने जाना लगा।
महादेवी वर्मा का शिक्षा और शिक्षण का सफर | Mahadevi Verma Education
महादेवी वर्मा ने प्रारंभिक शिक्षा के लिए इंदौर के मिशन स्कूल में दाखिला लिया। उस वक्त लड़कियों की शिक्षा पर इतना जोर नहीं दिया जाता था अर्थात लड़कियों की जल्दी शादी कर दी जाती थी हुआ तो महादेवी वर्मा के साथ भी कुछ ऐसा ही उनकी शादी तब कर दी गई जब वह दसवीं क्लास में पढ़ती थी।
महादेवी वर्मा ने पढाई का सफर कभी भी नहीं छोड़ा और विवाह के बाद भी अपनी शिक्षा को जारी रखा। विवाह के बाद उन्होंने 1919 में इलाहबाद के एक कॉलेज में प्रवेश किया जिसका नाम क्रास्थवेट था।
उन्होंने वहां जी तोड़ के मेहनत की और एक मेधावी और होनहार छात्रा के रूप में अपनी छवि को सामने लेकर आई। महादेवी वर्मा ने जब इलाहाबाद कॉलेज में दाखिला लिया तब वह आठवीं कक्षा की विद्यार्थी थी। विवाह के बाद उन्हें कुछ समय के लिए अपनी पढ़ाई पर रोक लगानी पड़ी।
1919 से 1921 तक उन्होंने कड़ी मेहनत की और 1921 में उन्होंने अपनी आठवीं की परीक्षा प्रथम स्थान में उत्तीर्ण की। आठवीं के बाद उन्होंने कवितायें लिखना शुरू कर दिया था। जब तक उन्होंने दसवीं की परीक्षा पास की तब तक वह एक कवियत्री के रूप में प्रचलित हो चुकी थी।
महादेवी वर्मा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री संस्कृत में हासिल की और तब वह अपनी कविता लेखन में नाम कमा चुकी थी।
वह शिक्षा ग्रहण करने के बाद इलाहाबद स्कूल में प्राचार्य का काम किया और फिर इलाहाबाद में एक महिला आवासीय कॉलेज प्रयाग महिला विद्यापीठ की कुलपति के रूप में काम किया।
महादेवी वर्मा का करियर | Mahadevi Verma Career in Hindi
अगर महादेवी वर्मा के करियर की बात करें तो उनका जीवन लेखन संपादन और शिक्षण में ही बीता। वह एक कवि होने के साथ - साथ एक कुशल शिक्षक भी थे। उन्होंने इलाहाबाद में प्रयाग महिला विद्यापीठ के विकास और प्रसार के लिए महान योगदान दिया था।
उनके समय में महिलाओं का कार्य क्षेत्र इतना ज्यादा विकसित नहीं था पर उन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ में रहते हुए महिलाओं को न की जागृत किया साथ में उन्हें उनके अंदर क्रन्तिकारी गतिविधियों को भी सामने लेकर आये।
उन्होंने इस कॉलेज में एक सफल प्रधानाचार्य के रूप में काम किया। उन्होंने 1923 में एक पत्रिका था जिसका नाम चाँद था उनका सम्पादन संभाला और इस पत्रिका से सभी महिलाओं और समाज को जागृत करने का प्रयास किया। साहित्य के क्षेत्र में आगे काम करते हुए
उन्होंने 1955 में इलाहाबाद में ही में साहित्यिक संसद की स्थापना की जिसमें साहित्य गोष्ठियां की जाती थी। अपने महान कवि रचनाओं से उन्होंने सभी कवियों को एक सूत्र में बांधा और अलग कवी गोष्ठियां करना शुरू कर दिया।
महादेवी वर्मा द्वारा किये गए सामाजिक कार्य
एक कवि होने के साथ महादेवी वर्मा एक सामाजिक कर्यकर्ता के रूप में भी जानी जाती थी। उन्होंने महिलाओं के विकास के लिए कई कार्य किये।
1937 में उन्होंने नैनीताल से 25 किमी दूर उमागढ़, रामगढ़, उत्तराखंड नामक गाँव में एक घर बनाया और उसका नाम मीरा मंदिर रखा। उन्होंने इस मीरा मंदिर में रहकर समाज और शिक्षा के लिए काम करना शुरू कर दिया।
उन्होंने केवल साहित्य में नाम नहीं कमाया पर इसके साथ महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्म निर्भर होने के लिए प्रेरित किया। महादेवी वर्मा के महिलाओं के लिए किये गए कार्यों को एक क्रांतिकारी कदम भी कहा जा सकता है।
महिलाओं की शिक्षा के बाद उन्होंने सम्पूर्ण समाज के लिए काम करना शुरू कर दिया। उनकी रचनाओं में सीधे तौर से किसी भी किस्म की पीड़ा या दर्द का आभाष नहीं होता है पर उनकी कृतियों से सीधे तौर से समाज का उत्थान होता है।
महिलाओं के प्रति विकास कार्य और जनसेवा और उनकी शिक्षा के कारण उन्हें समाज सुधारक भी कहा जाने लगा था।
महादेवी वर्मा की धर्म के प्रति सोच
महादेवी वर्मा की माता जी का धार्मिक स्वभाव और एक शाकाहारी महिला थी। महादेवी वर्मा भी अपनी माता की तरह एक शाकाहारी और धार्मिक निष्ठा का जीवन व्यतीत करती थी। वैसे तो उनकी धर्म के बारे में सोच की बात करें तो वह सभी धर्म के प्रति निष्ठां और प्रेम करती थी।
उनकी रचनाओं में किसी भी धर्म के प्रति कोई भी रोष भरा व्यंग्य नहीं है। महादेवी वर्मा हालाँकि हिन्दू धर्म की थी पर महादेवी वर्मा प्रेम और अहिंसा की पुजारी थी।
उन्होंने सभी धर्मों का आदर करते हुए बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को अपने जीवन में लाया था। किसी से वैर नहीं करना सभी से सदाचार से बोलना सभी धर्मों के प्रति अच्छी सोच रखना उनका सच्चा धर्म था।
महादेवी वर्मा की भाषा शैली
हिंदी साहित्य की बात करें तो महादेवी वर्मा ने अपनी सभी कृतियों को छाया वादी युग में लिंकः हुआ था। उन्होंने अपनी कविताओं में खड़ी बोली का इस्तेमाल किया। खड़ी बोली वह बोली है जो संस्कृत का ही एक रूप है और हिंदी में रूपांतरण है।
न्होंने अपनी कविताओं में कठोर शब्दों का प्रचलन नहीं किया बल्कि संस्कृत और बांग्ला भाषा के कोमल शब्दों को चुनकर उनका हिंदी भाषा में प्रयोग किया। उन्होंने अपनी कविताओं को चित्र शैली और प्रगीत शैली में लिखा।
चित्र शैली में उन्होंने विरह संबंधी रचनाओं का वर्णन किया और प्रगीत शैली के जरोये उन्होंने समाज को जागृत करने का प्रयास किया। अगर संक्षित में कहें तो उनकी भाषा शैली बहुत ही सरल और आम आदमियों के समझ में आने वाली थी।
महादेवी वर्मा द्वारा लिखी गई कुछ कविताओं के नाम।
कौन है ? , बाँच ली मैंने व्यथा , शेष कितनी रात ? , बुझे दीपक जला लूँ , दीप मेरे, मुरझाया फूल, हुई विद्रुम बेला नीली, नये घन, अश्रु-नीर, आना, निश्चय ,स्वप्न, मेरी साध, अभिमान आदि।
ऊपर लिखी कविताओं के इलावा महादेवी वर्मा एक गद्यकार भी थी जिनकी कुछ रचनायें नीचे दी गई हैं।
अग्निरेखा :- 1990 में प्रकाशित हुई, इस कविता में उन्होंने एक दीपक को अंधकार को मिटाने का प्रतीक माना है। ये उनकी मृत्यु से पहले अंतिम संग्रह था।
निहार :- निहार कविता संग्रह महादेवी वर्मा का पहला कविता संग्रह है और इसे महादेवी वर्मा ने 1923 और 1929 के बीच लिखा था जिसमें कुल 47 सुन्दर कवितायें हैं।
नीरजा :- नीरजा महादेवी वर्मा का तीसरा कविता संग्रह है जिन्हे उन्होंने 1931 से लेकर 1938 तक लिखा था। और यह संग्रह 1938 में ही में प्रकाशित हुआ था।
साध्य गीत :- यह कविता संग्रह महादेवी वर्मा का विरह और वेदना से जुड़ा हुआ सुंदर कविता संग्रह है जिसे महादेवी वर्मा के द्वारा 1934 से 1936 तक दो सालों में लिखा गया और ये संग्रह 1936 में प्रकाशित किया गया था।
दीपशिखा :- यह महादेवी वर्मा का पांचवां कविता संग्रह था जिसे महादेवी वर्मा ने 1936 से लेकर 1942 तक 6 सालों में पूरा किया था। इस संग्रह में प्रेम और विरह की झलक देखने को मिलती है।
सप्तपर्णा :- यह महादेवी वर्मा का छठा कविता संग्रह था जिसे उन्होंने 1959 में पूरा किया था और इसमें बौद्ध धर्म की झलकियां देखने को मिलती हैं।
प्रथम आयाम :- इस कविता संग्रह में महादेवी वर्मा ने एक बच्चे के की किशोरावस्था और वालयवस्था का विवरण किया है।
महादेवी वर्मा ने अपनी कविताओं से समाज को जागृत किया था और साहित्य की दुनिया मैं एक अलग पहचान बनाई थी उनकी रचनाओं के लिए उन्हें मरणोपरांत और पहले पुरस्कारों से नवाजा गया था जिनमे कुछ नीचे दिए गए हैं।
महादेवी वर्मा की मृत्यु :- महादेवी वर्मा ने पुरे देश को अपने जीवन कल में अपनी कृत्यों से और अपनी रचनाओं प्रेरित किया था। प्रसिद्ध कवियत्री की मृत्यु 11 सितम्बर सन 1987 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में हुई थी जब उनकी मृत्यु हुई तो उनकी उम्र 80 वर्ष की थी। उनकी कविताओं को आज भी बड़े ही सहज स्वभाव से सभ स्कूलों में पढ़ाया जाता है।